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प्र व॒ एको॑ मिमय॒ भूर्यागो॒ यन्मा॑ पि॒तेव॑ कित॒वं श॑शा॒स। आ॒रे पाशा॑ आ॒रे अ॒घानि॑ देवा॒ मा माधि॑ पु॒त्रे विमि॑व ग्रभीष्ट॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra va eko mimaya bhūry āgo yan mā piteva kitavaṁ śaśāsa | āre pāśā āre aghāni devā mā mādhi putre vim iva grabhīṣṭa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। वः॒। एकः॑। मि॒म॒य॒। भूरि॑। आगः॑। यत्। मा॒। पि॒ताऽइ॑व। कि॒त॒वम्। श॒शा॒स। आ॒रे। पाशाः॑। आ॒रे। अ॒घानि॑। दे॒वाः॒। मा। मा॒। अधि॑। पु॒त्रे। विम्ऽइ॑व। ग्र॒भी॒ष्ट॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:29» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:11» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देवा:) विद्वानों (व:) तुम्हारी संगी (एक:) एक असहाय मैं (यत्) जो (भूरि) बहुत (आग:) अपराध है उसको (आरे) दूर (प्र,मिमय) फेंकूँ और (पितेव) पिता के तुल्य (कितवम्) जुआ खेलनेवाले (मा) मुझको (शशास) शिक्षा कीजिये। जो (पाशा:) बन्धन और (अघानि) पाप है उनको (आरे) दूर (विमिव) पक्षि के तुल्य फेंकूँ। इन सबको (पुत्रे) पुत्र के निमित्त (मा) मुझको (मा) मत (अधि, ग्रभीष्ट) अधिक कर ग्रहण करो ॥५॥
भावार्थभाषाः - सबको प्रशंसा करनी चाहिये कि हे विद्वान् जनो! तुम्हारे संग से हम लोग पापों को छोड़ धर्म का आचरण करनेवाले हों। आप लोग पिता के तुल्य हमको शिक्षा देओ, जिससे हम दुष्टाचरण से दूर रहें ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे देवा विद्वांसो वो युष्माकं संग्येकोऽहं यद्भूर्यागोऽस्ति तदारे प्रमिमय पितेव कितवं मा शशास यानि पाशा अघानि च तान्यारे विमिव मिमय। इमानि पुत्रे मा माधिग्रभीष्ट ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (वः) युष्माकम् (एकः) असहायः (मिमय) प्रक्षिपेयम् (भूरि) बहु (आगः) अपराधम् (यत्) (मा) माम् (पितेव) पितृवत् (कितवम्) द्यूतकारिणम् (शशास) शाधि (आरे) दूरे (पाशाः) बन्धनानि (आरे) दूरे (अघानि) पापानि (देवा:) विद्वांस: (मा) निषेधे (मा) माम् (अधि) उपरि (पुत्रे) (विमिव) पक्षिणमिव (ग्रभीष्ट) गृह्णीयाः ॥५॥
भावार्थभाषाः - सर्वैराशंसितव्यं भो विद्वज्जना युष्माकं सङ्गेन वयं पापानि त्यक्त्वा धर्माचारिणः स्याम। भवन्तो जनकवदस्मान् शिक्षध्वम्। यतो वयं दुष्टाचाराद् दूरे वसेम ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्वांनी अशी प्रशंसा करावी की हे विद्वानांनो! तुमच्या संगतीने आम्ही पापाचा त्याग करून धर्माचरण करावे. तुम्ही पित्याप्रमाणे आम्हाला शिक्षण द्या. ज्यामुळे आम्ही दुष्ट आचरणापासून दूर राहावे. ॥ ५ ॥